-मुद्दा जो जरुरी है-
तथ्य और आलेख- संतोष "प्यासा" 

छवि गूगल से साभार

आज हम और हमारा  समाज बड़ी बड़ी बातें करता थक नहीं रहा | मीडिया और सरकार देश की आम जनता को अहम् मुद्दे से भटकाने में माहिर है |  आजकल मीडिया का काम सिर्फ हो हल्ला मचाने तक ही सीमित है | वहीँ सरकार फलाना ढिमका कर रही है | केंद्र सरकार तो आँख बंद करके "अच्छे दिनों का झुनझुना बजाने व्यस्त है"|
लेकिन कुछ ऐसे भी मुद्दे हैं जिन्हे उठाना बेहद जरुरी है | जिनकी सच्चाई जानकर आपको इंसानियत से नफरत हो जाएगी | इन मुद्दों की हकीकत जानकर आपकी आँखों में आंसू आ जायेंगे |
न्यूज मिरर ने मुहीम छेड़ी है | न्यूज मिरर अब हर हफ्ते आपके सामने लेकर आएगा कुछ ऐसे मुद्दे जो जरुरी है |
"मुद्दा जो जरुरी है" में हम आपको आज एक ऐसी अमानवीय परंपरा  से रूबरू कराने जा रहे है , जिसकी हकीकत जानकर आप यही सोचेंगे की क्या ऐसा भारत में हो रहा है ?

क्या आप यकीन करेंगे अगर मै आपसे कहूं इस गांव में माँ अपनी मात्र १० वर्ष की बेटी को जबरन वैश्यावृत्ति करने को मज़बूर करती है ?  यकीन करना मुश्किल है | सुनने में भी भद्दा लगता है | लेकिन यह हमारे समाज का  एक घिनौना सच है |
यह मुद्दा है बीजेपी शाषित मध्य प्रदेश के बारना गाँव का  | इस गांव में बंछाड़ा जनजाति के लगभग ६०-७०- परिवार रहते हैं | जिनके आजीविका का एक मात्र  माध्यम वैश्यावृत्ति ही है | इस घिनौने देह व्यापार की शुरुआत होती है "नथ उतराई " से | नथ उतराई जिसका मतलब है  वर्जिनिटी ऑक्सन  यानि की कौमार्य नीलामी | जब इस समुदाय की बच्चिया मात्र ११ या १२ वर्ष की उम्र में पाँव रखती है, तभी से स्थानीय व अन्य स्थानों के अमीर इस गांव में आकर कौमार्य की बोली लगाते हैं | जब यह नीलामी पूरी हो जाती है तो इसके बाद नथ उतराई के लिए समय व स्थान तय किया जाता है | फिर तय समय आने पर बच्ची की माँ अपने हाथो से अपनी बच्ची को नथ उतराई के लिए तैयार करती है | इस छोटी सी बच्ची (जिसकी उम्र गुड्डे गुड़ियों से खेलने की है) को अच्छे से पता होता है की आज उसके साथ क्या होने वाला है |  क्यूंकि इससे पहले वो दूसरी लड़कियों को नथ उतराई करवाते देख चुकी होती है |
उस रात  बंछाड़ा परिवार की महिलाये और पुरुष शराब के नशे में सराबोर हो कर झूमते है, नाचते हैं | नथ उतराई के बाद बच्ची को अपना भविष्य पता चल जाता है | अब उसे गांव में ही एक छोटी झोपडी दे दी जाती है | अब पूरे जीवन उसे देह व्यापार करना है | लोगो की हवस की भूख शांत करनी है | अपना  शरीर नुचवाना है | ग्राहकों को खुश करना है |  ये सब बिना कंडोम के होता है |
बड़े शर्म की बात है समाज के लिए | खिलौने से खेलने की उम्र में इन बच्चियों को हवस के गिद्धों से अपना शरीर नुचवाना पड़ता है | सेज सजानी पड़ती है | छोटी से उम्र में शरीर भी सेक्स वर्क के लिए परिपक्व नहीं होता है | ऐसे में उस बच्ची की वेदना, तड़प के बारे में सोंच कर भी रोंगटे खड़े हो जाते है | उसकी सिसकियाँ दम तोड़ देती हैं | नथ उतराई के दिन ही उसकी आत्मा घुट  कर मर जाती है | 

जरा सोंचिये उस माँ के बारे में जो अपनी बच्ची को शरीर बेचने में के लिए सजाती है | क्या वो खुश होती  होगी ? बिलकुल नहीं | बेचारी माँ का कलेजा फटा जाता होगा | बेचारी कि ममता कसोटती होगी | लेकिन खुद को सभ्य कहलवाने वाले चंद घटिया (इससे गन्दा शब्द नहीं मिला मुझे) लोगो के आगे बेबस, लाचार होकर बेचारी मां को मजबूर होना पड़ता है |
जरा सोंचिए उस बाप के बारे में जो अपनी लाड़ली को मज़बूरीवस्  जिस्म के हवानो के सामने परोसने में बेबस है | क्यूंकि वो जानता है कि देश कि आजादी के  दशकों बाद भी सरकार को उसकी (बाप एवं बंछाड़ा समुदाय ) कि समस्या से कोई सरोकार नहीं है | न मीडिया सुध लेगी, न सरकार दुःख पूछेगी |   
शर्म आती है मीडिया पर जो सिर्फ गाय गोबर में ही उलझी रहती है | लानत है सरकार पर जो खोखले दावे और वादे करते नहीं थकती |
बंछाड़ा परिवार को मूलभूत योजनाओं का भी लाभ नहीं मिल पाता| जब इनसे पूंछा गया की ये लोग इस कार्य को छोड़ कर कोई दूसरा काम क्यों नहीं करते , तो ये बताते है कि स्थानीय अमीरज़ादों और पुलिस कि मिलीभगत कि वजह से कोई अन्य कार्य नहीं कर सकते है | अमीरजादे मज़बूर करते है इन्हे | इस परिवार के पास राशन कार्ड भी नहीं है |

1 comments:

  1. इन्सान का इन्सान के लिऐ दर्द होता तो यह सब नहीं होता पर यहां तो इन्सान के रुप में हवस के भूखे शैतान है जो अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए इस समुदाय को कोई ओर काम करने नहीं देते।

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