रितुराज राजावत
जितने रंगे सियार थे सब खुल के आ गए*
*- विगत वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुची जीडीपी आंकड़ों ने दिखाया 5.7 हुआ 2.25 लाख करोड़ का नुकसान*
*- नोटबन्दी का हिंदुस्तान में पड़ा बुरा असर पथ से भर्मित हुई देश की प्रगति*
*- काले धन और आतंवाद से निपटने के लिए प्रधानमंत्री ने की थी नोटबन्दी कि घोषणा*
*- 150 से ऊपर गयी थी जाने कइयों की नही उठ पाई थी अर्थीया और कई बहनों की टूटी थी शादी*
*- 99 फीसदी से ज्यादा रिजर्व बैंक में लौटा रुपया काले धन का नही मिला कोई नामोनिशान*
*- 15 से 20 लाख लोग हुए नोटबन्दी के चलते बेरोजगार आखिर कौन लेगा इन सब की जिम्मेदारी*
कालेधन और आतंवाद से निपटने के लिए देश के प्रधानमंत्री द्वारा पिछले साल 8 नवम्बर को नोटबन्दी की घोषणा की गई थी । हालांकि लोकसभा चुनाव के पहले इसी कालेधन को प्रधानमंत्री द्वारा स्विस बैंकों में जमा बताया जा रहा था । फिलहाल रिजर्व बैंक ने अपने आंकड़े जारी कर दिए है जिसमे कहा गया है कि बैंक में वही नोट वापस आये है जो भारतीय बाजार में चलन पर थे । बुद्धजीवियों ने इन आंकड़ों को देखते हुए कमर कस ली है हर तरफ भाजपाई भक्तों की तलाश की जाने लगी है । कारण सिर्फ एक ही माना जाना चाहिए कि अगर विदेश में काला धन खटिया तोड़ रहा था तो देश में नोटबन्दी क्यो और किस लिए की गई । इसी बीच प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर पूर्व की भांति निवेशकों की खोज में निकल चुके हैं । हाल ही में एक बयान जारी किया गया है जिसमे देश के पहले बहुराष्ट्रीय प्रधानमंत्री को नोटबन्दी पर सफाई देनी पड़ी । कहा यह जा रहा है कि कालाधन 2019 तक देश में वापिस लाने के भष्कर प्रयास उसी प्रकार किये जा रहें हैं जैसे विदेशी निवेशकों को भारत में लाने के लिए सरकार पिछले 3 सालों से करती आई है । कालेधन को लेकर जनता के कान एक बार फिर खड़े हो चुके हैं चाय की दुकानों पर चाय के साथ चर्चा इस बात पर की जा रही है कि क्या दोबारा फिर से लाइन में लगना पड़ेगा कि नही । सटोरियों की पांचों उंगलियां घी में और मूड़ कड़ाई पर जा चुका है दाव इस बात पर लगाया जा रहा है कि कालाधन 2019 के पहले सीमा पार कर पायेगा भी की नही । पिछले वर्ष की जाने वाली इस दुर्भाग्यपूर्ण घोषणा पर गरीब जनता अब तक टेसू बहा रही है । हाल फिलहाल 20 लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आकर रोजगार को अलविदा कह चुके हैं । 2.25 लाख करोड़ का नुकसान भारतीय अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ा है अन्य पार्टियों का इस मुद्दे पर एक मत एक ही राय है मांग की जा रही है कि इसकी भरपाई भाजपाइयों द्वारा की और कराई जानी चाहिए । विशेष लोगों का कहना है कि नोटबन्दी के दौरान एटीएम की कतार में लगे 150 जानों पर भावी प्रधानमंत्री द्वारा चर्चा ना करना ठीक उसी तरह समझा जाना चाहिए जैसे बिल्ली चूहे को खा जाती है । हालांकि ये बात और है कि जनता की जगह अगर नेता इन लाइनों में लग कर अपनी जिंदगी को टाटा या बाय बाय कह देते तो उन्हें सरकार से मरणोपरांत परमवीर चक्र के साथ शहीद का दर्जा भी दिया और दिलवाया जा सकता था । जनता का महत्वपूर्ण सवाल बस एक ही है कि सेना के जवान आज भी शहीद हो रहें हैं नोटबन्दी अगर इतनी कारगर थी तो आतंकवाद पर लगाम अब तक क्यो और किस कारण से नही लग सकी है । भाजपा के होनहार धुरंधर और वित्तमंत्री की सीट पर काबिज माननीय जेटली जी के धड़ाधड़ बयान देने की सुरुआत हो चुकी है काले झूठ को सफेद लिबाज पहना कर कहा यह जा रहा है कि नोटबन्दी कालेधन की रोकथाम के लिए नही की गई थी । हालांकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नोटबन्दी का पूर्ण लाभ प्राप्त हुआ है हजार और पांच सौ की बन्दी के विज्ञापनों का पैसा आजतक सरकार से वसूला जा रहा है । कैशलेस इंडिया का आगाज हो चुका है वो बात और है कि गरीब को रोटी नसीब नही है लेकिन अत्याधुनिकता का जामा उसे सरकार द्वारा पहनाये जाने की तैयारियां आज चरम पर हैं । जनता पूर्णरूप से अब यह भूल चुकी है कि लाइन में लग कर लाठियों का सामना सिर्फ गरीब कर रहे थे हालांकि ये बात और है की गरीब लाइन में खड़ा रह गया और मंत्रियों ने नोटबन्दी की फिक्र न करते हुए पांच सौ करोड़ की शादियां कर डाली । मेरा देश बदल रहा है जैसा नारा ठीक उसी तरह जुमला साबित हुआ जैसे 15 से 20 लाख खातों में आएंगे वाला हुआ था । आरबीआई के आकड़े आने से पूर्व जिस आतंकवाद और काले धन पर भक्तगण नागिन नृत्य कर रहे थे वो भक्तगण अब सड़कों पर से नदारत हो चुके हैं । अंदाजा ये लगाया जा रहा है कि फिर किसी नए शिगूफे के साथ मुंगेरीलाल बनी जनता को दिन में सपने दिखाए जाने की जोरो पर तैयारी चल रही है । आने वाली घोषणा पंखे की खरीद पर फ्लैट मुफ्त की भी हो सकती है । इसी को कहतें है कि जितने रंगे सियार थे सब खुल के आ गए
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