बबलेश द्विवेदी एक भारतीय नागरिक

देशभक्ति एक ऐसा शब्द है जो आज के समय में हर एक की जुबान में मौजूद है। अपने देश का ही नुकसान कर रहे लोग आज स्वयं को देशभक्त की संज्ञा से नवाज़ रहे हैं। सड़क में कचरा फेक रहे , टैक्स चोरी कर रहे, व ग़ैरसरकारी कार्य कर रहे लोग खुद को देशभक्त बतला रहे हैं। _मै किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रहा हूँ_
अगर आज हम सही मायने में देशभक्त हो जावे तो हम फिर से विश्वगुरु बन सकते हैं। लेकिन शायद आज हम देशभक्ति की परिभाषा तक से अनजान हैं।

एक वाकया सबके समक्ष प्रस्तुत है- 1945 द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब जापान के दो बड़े शहरों में परमाणु हमले हुये थे और जापान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डगमगा गयी थी और जापान के लोग खाने तक को मौहतज थे उस समय अमेरिका व चीन जापान की बाजार में अपने मीठे संतरे ( क्योंकि जापान के संतरे कसैले थे) लेकर आये व जापान में मौजूद संतरों के भाव के कम भाव में बेचने की शुरुआत की किंतु किसी ने नहीं खरीदे। असहाय होकर उन्होंने दाम और घटा दिए फिर भी जापान ने लोगों ने खरीदने से मना कर दिया। उनका कहना था कसैला है तो कसैला खाएंगे महंगा है तो महंगा खाएंगे पर अपने देश का खायेंगे  और उन्होंने उस घम्भीर परिस्थिति में भी विदेशी वस्तुओं को बहिष्कार किया।
ये होती है देशभक्ति । और एक हम हैं की दिन भर देश भक्ति के नारे लगाते हैं सिर्फ नारे ही लगाते हैं।
देशभक्त व देशभक्ति मेरे भारत में सिर्फ सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गयी है।
हमारी राजनैतिक पार्टियाँ जिन्हें हम सत्ता में लाते है हम उन्ही के हाथों की कठपुतलियां बन के रह जाते हैं। वे हमें धर्म के नाम पर मंदिर मस्जिद के नाम पर बांटकर खुद की भरपाई में रहते हैं। और हम फिर भी खुद को देशभक्त कहते हैं।
अरे एक दिन सिर्फ एक दिन के लिए खुद को सच्चे देशभक्त बन के देखो दिल को सुकून न मिले तो कहनाबन कर के देखो न की देशभक्ति के नारे लगाकर क्योंकि मै फिर कहता हूँ की
देशभक्ति अल्फाजों की मौहतज नहीं होती।

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